Wednesday, June 16, 2010

मानव धर्म क्या है !

मानव धर्म क्या है, मानव धर्म की आवश्यकता क्यों है।

मनुष्य अर्थात मानव इस संसार का अदभुत प्राणी है जिसके इर्द-गिर्द ये दुनिया चलायमान है, ऎसा नहीं है कि सिर्फ़ मनुष्य के लिये ही यह संसार है लेकिन मनुष्य ही वह भौतिक केन्द्र है जो इस संसार का महत्वपूर्ण अंग है।

मानव आदिकाल से शनै-शनै अपनी बुद्धि व विवेक से निरंतर नये नये अविष्कार करते हुये वर्तमान में अनेक भौतिक सुख व सुविधाओं का आनंद प्राप्त कर रहा है, जिन अविष्कारों की कल्पना आज से सौ वर्ष पहले नही की गई थी आज उनका अविष्कार हो गया है, आज जिन अविष्कारों के संबंध में कल्पना नहीं की जा रही है संभवत: आने वाले समय में उन अविष्कारों का आनंद भी हम प्राप्त करेंगे।

इन तरह तरह के बदलाव के साथ साथ मनुष्य भी बदलता जा रहा है आज उसे अपने परिवार व समाज के संबंध में सोचने व समझने का समय ही नहीं है, संभव है आधुनिक अविष्कारों व सुख-सुविधाओं ने मनुष्य को जकड लिया है वह अपने नैसर्गिक धर्म अर्थात मानव धर्म को भूल रहा है, मानव धर्म से मेरा तात्पर्य मानवता से है मानवता जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति संवेदनशील रखती है।

आज मनुष्य क्यों जातिगत व धार्मिकता के बंधन में बंधकर मानवता से परे हो रहा है, आज सर्वाधिक आवश्यकता मानवता व मानवीय द्रष्ट्रिकोण की है, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव, निस्वार्थ प्रेम व सहयोग की है, कोई अपना-पराया नहीं है, हम सब एक हैं, यह ही मानव धर्म है।मानव धर्म क्या है, मानव धर्म की आवश्यकता क्यों है।

मनुष्य अर्थात मानव इस संसार का अदभुत प्राणी है जिसके इर्द-गिर्द ये दुनिया चलायमान है, ऎसा नहीं है कि सिर्फ़ मनुष्य के लिये ही यह संसार है लेकिन मनुष्य ही वह भौतिक केन्द्र है जो इस संसार का महत्वपूर्ण अंग है।

मानव आदिकाल से शनै-शनै अपनी बुद्धि व विवेक से निरंतर नये नये अविष्कार करते हुये वर्तमान में अनेक भौतिक सुख व सुविधाओं का आनंद प्राप्त कर रहा है, जिन अविष्कारों की कल्पना आज से सौ वर्ष पहले नही की गई थी आज उनका अविष्कार हो गया है, आज जिन अविष्कारों के संबंध में कल्पना नहीं की जा रही है संभवत: आने वाले समय में उन अविष्कारों का आनंद भी हम प्राप्त करेंगे।

इन तरह तरह के बदलाव के साथ साथ मनुष्य भी बदलता जा रहा है आज उसे अपने परिवार व समाज के संबंध में सोचने व समझने का समय ही नहीं है, संभव है आधुनिक अविष्कारों व सुख-सुविधाओं ने मनुष्य को जकड लिया है वह अपने नैसर्गिक धर्म अर्थात मानव धर्म को भूल रहा है, मानव धर्म से मेरा तात्पर्य मानवता से है मानवता जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति संवेदनशील रखती है।

आज मनुष्य क्यों जातिगत व धार्मिकता के बंधन में बंधकर मानवता से परे हो रहा है, आज सर्वाधिक आवश्यकता मानवता व मानवीय द्रष्ट्रिकोण की है, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव, निस्वार्थ प्रेम व सहयोग की है, कोई अपना-पराया नहीं है, हम सब एक हैं, यह ही मानव धर्म है।

जय गुरुदेव
( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)

6 comments:

Amitraghat said...

अगर हर बन्दा केवल अपने धर्म का ही पालन कर ले तो पूरी दुनिया जन्नत हो जाएगी...."

माधव( Madhav) said...

nice post

arvind said...

bahut acchaa aadhyatmik vichaar.

Unknown said...

जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

Shriram Narasimhan said...

सर्व मानव ने शुभ चाहा है, शांति एवं सामंजस्य चाहा है | इस दिशा में आज तक कई प्रयास हुए हैं, परन्तु संतोष जनक परिणाम नहीं निकला | इन प्रयासों में विभिन्नताएं भी दिखती हैं| आदि काल से, हम मानवों का विकास हमारे स्वयं के बारे में समझ एवं अस्तित्व (वास्तविकता) के समझ पर निर्भर किया है| पत्थर कैसा है, जानवर कैसा हैं, इन सब में तो हम अधिकाँश मुद्दों पर एक-मत हो पाएं हैं, परन्तु मानव क्या है, क्यों है, कैसा है, इसपर एकमत होना, सार्वभौमिक होना अभी तक प्रतीक्षित है| अर्थात, हम सर्व देश में रहने वाले मानव, भौतिक क्रियाकलाप प्र विश्वास करते हैं, जबकि मानव के क्रियाकलाप पर विश्वास करना अभी तक बना नहीं| इस समस्या के चलते अभी तक मानव का मानवत्व, मानव का आचरण, मानव की मानसिकता, मानव की प्रकृति पर निश्चयन करना संभव नहीं हुआ हैं|
अमरकंटक निवासी श्री ए नागराज के २५ वर्ष के साधना एवं अनुसंधान से यह स्पष्ट हुआ है कि अस्तित्व (वास्तविकता) सह-अस्तित्व है, शून्य (स्पेस) में संपृक्त इकाइयों के रूप में है| ये इकाइयां ४ अवस्थाओं के रूप में प्रत्यक्ष हैं: जो पदार्थ, प्राण, जीव एवं मानव के रूप में है| इकाइयां स्वयं में व्यवस्था में हैं, एवं समग्र व्यवस्था में भागीदार हैं, अथवा सामंजस्य में हैं| मानव भी व्यवस्था में होना चाहता है, जो ज्ञान पूर्वक ही संभव हैं|
मानव की मूलभूत चाहना सुखी होने की है, जो समाधान से ही संभव हैं, सही समझ, ज्ञान से ही संभव है| मानव की समस्त समस्याएं समाधान, ज्ञान के अभाव के कारण ही है| अस्तित्व में व्यवस्था को समझना, चारों अवस्थाओं (पदार्थ, प्राण, जीव, मानव) में व्यवस्था को समझना ही मानव धर्म हैं| यही ‘समाधान’ हैं | प्रस्तु़त 'ज्ञान' निरपेक्ष है, प्रत्येक मनुष्य के लिए समान है, निश्चित है, सार्वभौम है| इस आधार पर सार्वभौम मानवीय आचरण एवं सार्वभौम मानवीय मूल्य स्पष्ट होता है, जिससे अखण्ड मानव समाज - सार्वभौम व्यवस्था की सम्भावना उदय होती है|
इस ‘समझ’ को शिक्षा विधि में लाने का स्वरूप तैयार किया जा चुका है, एवं भारत में पिछले १५ वर्षों में लगभग ३०,००० लोग इस दर्शन के परिचय शिविरों से गुजर चुके हैं| इसपर आधारित मूल्य-शिक्षा छत्तीसगढ़ राज्य स्कूल शिक्षा विभाग, उच्च-शिक्षण संस्थाऑ एवं, विश्वविद्यालयों में लागू हो चुके हैं| आज तक श्री नागराज जी से कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राज्य मुख्य-मंत्री, धर्म गुरु, प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षा विद एवं जन सामान्य लोग भी मिल चुके हैं, इस प्रस्ताव को सुने हैं, इनमे से कुछ इसके अध्ययन में लगे हैं|
मध्यस्थ दर्शन के इस प्रस्ताव में यह प्रतिपादित किया गया है कि मानव जाति एक है, मानव धर्म एक है| मानव धर्म = सुख = समाधान = समझ | यह अनुसंधान हम मानवों को अपने संकीर्ण, सामुदायिक मानसिकता से निकलने के लिए आशा की एक नयी किरण है, एक सरल मार्ग प्रशस्त कर देता है, जिससे वास्तव में अखण्ड मानव समाज, सार्वभौम व्यवस्था इस धरती पर स्थापित हो सके|

इसी क्रम में एक सर्व धर्म सम्मेलन आयोजित किया गया हैं, जिसमे इस अनुसन्धान के फलस्वरूप ‘सार्वभौम मानव धर्म, मानव जाति एक, मानव धर्म’ एक का प्रतिपादन किया जायेगा| यह सभी धर्म के मानवों, एवं वे मानव जो अपने को किसी धर्म से जोड़कर नहीं भी देखते हो को इस प्रस्ताव को अपने ही सद्-विवेक से जांचने के लिए आमंत्रण है | यह सम्मलेन २३ अप्रैल, २०१२, को कानपुर में होगा | अधिक जानकारी के लिए: सम्मेलन वेब साईट: www.madhyasth.info देखें, फोन: 9793919149, 9451522231

मध्यस्थ दर्शन मुख्य साईट के लिए क्लिक करें: www.madhyasth-darshan.info

Shriram Narasimhan said...

मानव जाति, मानव धर्म

मानव धर्म के बारे में, तीन आशय समाहित हैं| विकसित चेतना में जीता हुआ मानव, देव मानव, दिव्य मानव का अध्ययन है | चेतना के सन्दर्भ में चार भाग में अध्ययन है, जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना |

जीव चेतना विधि से सम्पूर्ण अपराध मानव कर्ता हुआ देखने को मिला, उसका गवाही शिक्षा में लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद का होना है | हर देश काल में हर अभिभावक अपने संतान को सुशील देखना चाहता है | उक्त प्रकार के तीनो उन्माद का शिक्षा देते हुए सुशील रहना कितना संभव है? हर अभिभावक सोच सकते है|

विकसित चेतना के प्रमाण में यही आचरण में पाया जाता है कि समाधान, समृद्धी, अभय, सहअस्तित्व ही सहज प्रमाण है | सहअस्तित्व में अनुभव का यह प्रमाण है| सहअस्तित्व अध्ययनगम्य हो चुकी है| ऐसे सहअस्तित्व में अनुभव मूलक विधि से सोचा गया विचारों का प्रमाण, नियम-नियंत्रण-संतुलन; न्याय-धर्म-सत्य रूप में व्यवहार में प्रमाणित होता है|

अनुभव मूलक विचार शैली सम्मत व्यवहार में स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार के रूप में प्रमाणित होता हैं| इसे जीके, प्रमाणित करके देखा है| जिसका प्रयोजन अखण्ड समाज-सार्वभौम व्यवस्था है| इसके लिए ऊपर कहे गए आचरण विधि से वर्तमान में विश्वास होना होता है, फलस्वरुप अखण्ड समाज होता है| अखण्ड समाज व्यवस्था ही ‘१० सोपनीय विधि’ से परिवार सभा मूलक व्यवस्था होता है| यही सार्वभौम व्यवस्था है| यही विकसित चेतना का फल परिणाम है जिसमे हर व्यक्ति का भागीदारी होना होता है|

व्यक्ति में समाधान
परिवार में समाधान, समृद्धी
समाज में अखण्डता
व्यवस्था में सार्वभौमता

सहज प्रमाण ही भ्रम मुक्त, अपराध मुक्त मानव का स्वरुप है| इस प्रकार के मानव तैयार होना ही, अथवा नर नारी तैयार होना ही अपराध मुक्त, भ्रम मुक्त मानव जाति का पहचान है|

मानव जाति एक होने के मूल में काले, भूरे, गोरे और विभिन्न नस्ल समेत पाए जाने वाले मानव जात में खून के प्रजातियों का समानता के आधार पर, शरीर रचना में समाहित हड्डियों के आधार पर, अंग और अवयवों के आधार पर एक होना, इन सबका संयुक्त रूप में नाखून, दांत, के बनावट तीखे होना, खून के प्रजातियां निश्चित होना और आतों में मांसाहारी जात के जीवों का आंते छोटे होना, शाकाहारी जीवों के आंते लंबी होना, इन्ही आधारों पर मानव जाति एक होना अध्ययनगम्य हो चुकी है|

मानव सुख धर्मी है, समाधान ही मानव धर्म है| समाधान समझदारी से होता है, समाधान से ही मानव सुख का अनुभव करता है, यही मानव धर्म है| यह अध्ययनगम्य हो चुकी है| छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग इसे अध्ययन कर रहा है|

इस प्रकार शरीर रचना के आधार पर मानव जाति एक है एवं समाधान (समझदारी) के आधार पर मानव धर्म (सुख) एक है |

इसी के आधार पर मानव जाति एक, धर्म एक होने का प्रतिपादन २३ अप्रैल २०१२ को होगा | मानव जाति एक, धर्म एक होने के आधार पर अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में ‘मानव मंदिर’ का स्थापना ग्राम करौली, कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ है|

जय हो! मंगल हो! कल्याण हो !

ए. नागराज
प्रणेता – मध्यस्थ दर्शन, सह-अस्तित्ववाद

अमरकंटक, जिला – अनूपपुर, म.प्र. भारत

०१ मार्च २०१२

इसके लिए सर्व धर्म सम्मेलन २३ अप्रैल, २०१२, को कानपुर में होगा | अधिक जानकारी के लिए: सम्मेलन वेब साईट: www.madhyasth.info देखें, फोन: 9793919149, 9451522231

मध्यस्थ दर्शन मुख्य साईट के लिए क्लिक करें: www.madhyasth-darshan.info