सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने से डरता हूं
कठिन मार्ग है मंजिल तक
रुक जाने से डरता हूं
हिंसा रूपी इस मंजर में
कदम पटक कर चलता हूं
कदमों की आहट से
हिंसा को डराते चलता हूं
झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूं
सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने ......................।
3 comments:
uday bhaayi bhut khub aap dre nhin jit aapke qdmon men he is vqt aek sher yaad aata he
yeh jhuton mkkaaron ki mhfil he
sch bole to tum bhi nikaale jaaoge .
akhtar khan akela kota rajsthan
badhiya kavita....satya our ahinsa ke raste par chalane se yadi darane lage to desh kaa kyaa hoga...?
कलम के सिपाही गर डरने लगेंगे,
देश के सिपाही फिर कैसे लड़ेंगे???
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